अकेला बगुला, a poetry by Gaurav Kumar

अकेला बगुला

अकेला बगुला देखा एक शाम एक बगुले कोआकाश में अकेले उड़ते,ना जाने क्या पाने की ज़िद लिएहवा के विरुद्ध मुड़ते!छोड़ा इसके साथियों ने है इसका साथ,या ना रख पाया उनके बीच ये अपनी बात!सोचता हूँ,काफिर बन उड़ चला है,या बना अपने मन का जोगी,ना जाने काफिले से अलग होने कीक्या वजह रही होगी!शायद नए मानसरोवर […]

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