ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो, a poetry by Kuntal Sanjay Chaudhari

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो ज़िन्दगी के दायरे में लिपटी थी वो,किसी तोहफे से कम नहीं थी वो।सूरज के किरणों को छूकर रोज,अपने ख्वाबों को बुनती थी वो।कभी पूरे हों, इसकी उम्मीद तो नहीं,पर सपने देखने की चाह रखती थी वो।रात को करवटे बदलते हुए,उस एक दिन की राह देखती थी वो।हवा में झूमते हुए,अपने […]

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