पतझड़, a poetry by Kumar Thakur, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

पतझड़

पतझड़ जब धरती के कैनवास परउदासी की सियाही जमने लगे,तब समझनादूर क्षितिज सेदबे पाओंपतझड़ का आगमन हैजब पंछियों की आवाज़ेंकहीं दूर वादियों सेआती हुई लगने लगें,तब समझना पतझड़ हैजब सूखे पत्तों परकदम दर क़दम चलते हुएकिसी वीरान मंज़िल की ओरजाने का अहसास होतब समझना पतझड़ है ..जब खण्डहरों की टूटी दीवारोंऔर झरोखों से झाँकतेसूनेपन को […]

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