Bhagat Singh

अबला अब गाँडीव उठा, a poetry by Bhagat Singh, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

अबला अब गाँडीव उठा

अबला अब गाँडीव उठा कब तक पथ-पथ लथपथ नारी यूंही फेंकी जाएगीकब तक अस्मत रिस-रिस लोचन देवों से आस लगाएगीयहाँ देव मौन हर बार हुए, पर वसन तेरे ही तार हुएदेखो आ धमके दुःशासन,सोया भी देखो प्रशासनरीढ़ तोड़कर वज्र उसी की छाती में कब गाड़ोगीअबला कब गाँडीव उठा कौरव का मस्तक फाड़ोगी॥कृष्ण बनेगा कौन यहाँ […]

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गठरी, a poetry by Bhagat Singh

गठरी

गठरी अपने-अपने सिर पर सब, अदृश्य बोझ ले चलतेमन में सपने और आशा, बिन खाद और पानी पलतेबिन खाद और पानी पलते, सपनों में सपना एक जगताजैसे ही खुद का बोझ बढ़े, दूजे का हल्का लगतादूजे का हल्का लगता पर, खुद का लगता है भारीइसी वहम में नजरें सबने,एक दूजे पर डारीएक दूजे पर डारी

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