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Poetry writing

अब चलो मान भी जाओ न

अब चलो! मान भी जाओ न क्या मन में मेरे मैल भरा, या दूषित सीरत है मेरी? तुम हर पल मुझसे खफ़ा रहो, क्या फूटी किस्मत है मेरी? व्यथा अगर हो कुछ तेरी, मैं दूर उसे कर जाऊंगा मैं दोषी हूँ क्या? आज बता दो, घुट-घुट न जी पाऊंगा। वो पहले वाले प्रेमगीत, फिर झूम-झूम […]

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आलोचना

आलोचना से कर्ण-पट को बंद करके क्या मिलेगा? अश्रुओं से “चक्षुओं” को द्रवित करके क्या मिलेगा? विरहाग्नि का दमन कर,उपलब्धियां तुझमें बहुत हैं आलोचना को सहन कर,खूबियां तुझमें बहुत हैं कायर नहीं, तुम वीर हो, दमनात्मक शमशीर हो दुःशासन को खींचने दो, कृष्ण का तुम “चीर” हो “आलोचना इक जौहरी” प्रतिभामयी हीरा तराशे भावना को

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Poetry writing

Mirror

When I look in the mirror I seeMyself standing with pride in my eyesWith no regretsFor having given my all.. The wrinkles over the faceTells a story unspoken ofThin strips of hair glued Over the scalp Reflect the aging Heavy rimmed glasses painting a perfect pictureOvergrown beard pointing the carelessnessI blink  and  once  again visualise the sameFor it won’t change…. Dr. Aakash VashisthaMBBS

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खुशी

सीख

आज खिलते हुए रंगो से कुछ सीखते हैं, चलो आज इन रंगो की तरह खिलते हैं हर किसी की जिंदगी में गम के बादल तो होते हैं, चलो आज खुशियो के कुछ रंग बिखेरते हैं चलो आज इन रंगो की तरह खिलते हैं इन्द्रधनुष सी चमक लिए इस जग को रोशन करते हैं चलो आज

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खुशी

खुशी

किसी की मुस्कुराहट बन सको, तो उसे कहते हैं खुशी किसी के गम को बाँट सको, तो उसे कहते हैं खुशी जिंदगी सिर्फ जीने का नाम नहीं है किसी को जिंदगी जीना सिखा सकें, उसे कहते हैं खुशी किसी को बिन वजह हँसा सके, तो उसे कहते हैं खुशी खामोशियों में दबे गम को मिटा

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Through the way

Through the way

My  heart started blossoming Ears began hearing Eyes looking at wing Face is glowing  That was a long way   With birds chirping  by the way Flowers welcoming all Trees showering overall Clear blue sky Just above the heads Bright glowing  sun Far away from us Huge castles were built With high grandevour When entered into

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धर्म धरा

यह  धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की  महा प्रान  ।।स्वर्णिम “अतीत” के चित्र , देश भारत महान  ।। हमने इसको इतिहास झरोखों से देखा  ।कहता वैसा ही पुरातत्व विद का लेखा  ।यह  मातृ  भूमि  स्तुत्या  है ,  जननी  समान  ।।यह धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की  महा प्रान  ।। यह  वीर  प्रसवनी ,  नीति –

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परदेसी

मैं  उनको  करता  शत-शत  प्रणाम ,जिस मिट्टी पर जन्में में कितने वीर महान।।क्यों  ना  उनका   परदेसी   हूं   लेकिन,करता हूं   मैं   उनका   भी   गुणगान।।सच्च   गाने  में   क्या  जाता  है ?जब   वह   है   सच  में  ही  महान ।।जय -जय भारत ,जय- जय भारत,तू   तो   है   मां  भारत   बड़ी   महान।।काश मेरा भी होता उस धरती पर जन्मजहां     होता   तेरा   इतना    सम्मान ।।इस   जन्म  में  तो  तुमसे  रिश्ता  जोड़ा,अगले   जन्म  में  मां  मुझको  भी  तुम-लेना    स्वीकार   कर   बेटा    मान ,ताकि   मैं  भी  खड़ा हो  तिरंगे के  नीचे-गा   सकूं   जन -गण -मन   का  गान  ।। Amit Kumar VansiI am Amit Kr Vansi. I am from a small village of muzaffarpur, Bihar, INDIA. gyaannirudra.com/

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