Hindi Poetry

अजन्मी कहानी

अजन्मी कहानी क्या वायुमंडल में नहीं हवा,जहाँ मैं साँस ले सकूँ;क्या पृथ्वी पर नहीं जगह,जहाँ मैं पांव रख सकूँ;भ्रूण हूँ तो क्या नहीं अस्तित्व है मेरा,कन्या हूँ तो क्या नहीं औचित्य है मेरा।अस्तित्व मेरा क्या है, माँ की आखों में देखो,औचित्य मेरा क्या है, तुम उसके हृदय से पूछो।हत्या एक की करते हो, दो प्राण […]

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एक ही अरमान

एक ही अरमान ऐ खुदा तू जान ले …ये मेरा अरमान है ,तू मुझे पहचान ले …. तुझे ये पूरा करना है..जाउं किसी राह पे ….चाहे किसी मोड़ पर,वो मिले मुझे ….वो मिले मुझे वहीं पर।मन की ख्वाहिशों के सिलसिले चलते रहें ……उनसे आके उसकी ख्वाहिशें मिलती रहें……वो न हो पर उसका ही अहसास हो

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ये ज़िन्दगी, a poetry by Chanda Arya, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

ये ज़िन्दगी..

ये ज़िन्दगी.. जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..तू उड़ जाना हवा का हाथ पकड़ के..सुलझा देना बादलों की लटों को..बहुत हैं, उलझी हुईये ज़िन्दगी…..जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..तू बह जाना झरने की बूँदों के साथ..सिमटा लेना अपनी अंजुरी में,बहुत है, भटकी हुईये ज़िन्दगी…जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..तू चल देना घास

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एक अनमोल कथा

एक अनमोल कथा बालमन का भोलापनभोलेपन में एक नटखट सी छुवन,एक पंछी आज पकड़ लूँ मैंबंदी बना कर उसको अपना,साहस जरा सिद्ध कर दूँ मैं। वो जाल बिछा, वो सेंध लगी….वो घेराबंदी आरम्भ हुईभोला पंछी कुछ समझ न पाया,दाने की इस तृष्णा ने …..आज उसे कैसा फंसाया । शांत पड़ गया पिंजरे में वोटुकुर -टुकुर

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बेटी

बेटी सब की पसंद नापसंद का खयाल रखती हूं,सब की सारी चीजो को संभाल रखती हूं।मेने रखे थे कहा ख्वाब मेरे में ही भूल जाती हूं,बेटी हूं मै, अकसर खुद को समझा लेती हूं।।बहेना था नदियों मैं, उड़ना था आसमानों में,मुझे मचलना था, इन आजादी की हवाओ मैं ।ये ज़मीं तो बेटों की है, उपकार

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मेरी आवाज़

मेरी आवाज़ अँधेरे से क्यों घबराती हो,बाहर घूमने से क्यों इतना कतराती हो,हर कोई बुरा नहीं होता,कभी किसी पर भरोसा क्यों नहीं दिखती हो?जब किसी ने उस लड़की से ये सवाल किया,तो उसकी आँखों से दर्द छलक उठा,उसने भी सवाल के बदले ही सवाल किया,आवाज़ दूँगी तो साथ दोगे क्या?बस इतना कहकर चली गई।जैसे एक

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पापा, a poetry by Anshul Kaushik, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

पापा

पापा जिनके साथ से मुकम्मल मेंअपनी ज़िन्दगी को मानती,एक बेहतरीन मार्गदर्शक मेंपापा आप को ही जानती…जो बेशक कुछ भी न कहेआँखों से बयाँ बस कर जाते है,जो देख लूँ चेहरा उनका मेंहर मुश्क़िल का हल हो जाए…आवाज से है जिनकी घर मेंएक अलग सा ही माहौल हैं,उनसे जुडी हर चीज़ घर मेंवास्तव में अनमोल है…पिता

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माँ, a poetry by Anshul Kaushik, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

माँ

माँ चाहे कितनी ही हो फिक्र भलेवो बिलकुल नहीं दिखती है,माँ है ना…ऐसे ही अपने अर्थ को दर्शाती है…लगे बुरा किसी बात का तो,वो हमको नहीं बताती हैचाहे नम हो जाएँ आँखेंकभी वो मुँह धोकर आ जाती है…हर छोटी छोटी बातों परवो मुझे बैठ समझती है,तू भोली है ये कहकरमुझे दुनिया से अवगत करवाती है…घर

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काम अधूरे रख छोड़े हैं, a poetry by Ravina, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

काम अधूरे रख छोड़े हैं।

काम अधूरे रख छोड़े हैं। काम अधूरे रख छोड़े हैंइस आस में की तुम आओगेजो छोड़ी है अधूरी दास्ताँउसे आकर पूरा कर जाओगेतुमने ही कहा था मुझसे कीहर काम की साझेदारी हैतो अपनी बात निभाने कीअब चलो तुम्हारी बारी हैसवालों की बारिश मेंमैंने उम्मीदों के कम्बल ओढ़े हैंवाजिब जवाबों की आस में मैंनेकाम अधूरे रख

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बचपन, a poetry by Rutuja Shinde, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

बचपन

बचपन छोटे छोटे कदम रखते चलना इन्होने सीखा,जरा जल्द ही रोटी कमाने केसवाल ने है इनको घेरालाड़-दुलार वाला यह बचपन किसी के लिएजिम्मेदारी का बोझ बन गया है,पढ़ाई लिखाई की उम्र मेंकोई बढ़ों का हाथ बटा रहा है।शिक्षा और खेलकूद वाला बचपन यहाँसभी के नसीब में कहामासूम बचपन यह इन काजग की भीड़ मे खो

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