kartik richhariya

Poetry writing

अब चलो मान भी जाओ न

अब चलो! मान भी जाओ न क्या मन में मेरे मैल भरा, या दूषित सीरत है मेरी? तुम हर पल मुझसे खफ़ा रहो, क्या फूटी किस्मत है मेरी? व्यथा अगर हो कुछ तेरी, मैं दूर उसे कर जाऊंगा मैं दोषी हूँ क्या? आज बता दो, घुट-घुट न जी पाऊंगा। वो पहले वाले प्रेमगीत, फिर झूम-झूम […]

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आलोचना

आलोचना से कर्ण-पट को बंद करके क्या मिलेगा? अश्रुओं से “चक्षुओं” को द्रवित करके क्या मिलेगा? विरहाग्नि का दमन कर,उपलब्धियां तुझमें बहुत हैं आलोचना को सहन कर,खूबियां तुझमें बहुत हैं कायर नहीं, तुम वीर हो, दमनात्मक शमशीर हो दुःशासन को खींचने दो, कृष्ण का तुम “चीर” हो “आलोचना इक जौहरी” प्रतिभामयी हीरा तराशे भावना को

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