Kumar Thakur

दिव्यता, a poetry by Kumar Thakur, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

दिव्यता

दिव्यता तुम से प्रेम करकेमैंने बहुत कुछ सिख लिया,घी, मखन, छाछ को,अलग करना सिख लिया,विष को पीना सिख लियागले में रखना सिख लिया,अमृत को बांटना सिख लियाजीवन को समझना सिख लियाप्रेम सहज चीज़ नहीं हैचाहे किसी से भी करो,बलिदान देना पड़ता हैअपनी इच्छाओं काअपनी खुशियों का,अपने सुख का,अपने अस्तित्व का,मन रूपी समंदर कामंथन करना पड़ता […]

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पतझड़, a poetry by Kumar Thakur, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

पतझड़

पतझड़ जब धरती के कैनवास परउदासी की सियाही जमने लगे,तब समझनादूर क्षितिज सेदबे पाओंपतझड़ का आगमन हैजब पंछियों की आवाज़ेंकहीं दूर वादियों सेआती हुई लगने लगें,तब समझना पतझड़ हैजब सूखे पत्तों परकदम दर क़दम चलते हुएकिसी वीरान मंज़िल की ओरजाने का अहसास होतब समझना पतझड़ है ..जब खण्डहरों की टूटी दीवारोंऔर झरोखों से झाँकतेसूनेपन को

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प्रेम, a poetry by Kumar Thakur, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

प्रेम

प्रेम तेरे प्रेम मेंऔर मेरे प्रेम मेंकेवल एक व्याख्याविषय का फरक था ..तेरा प्रेम संसारिक था,मेरा प्रेम अलौकिक,तेरा प्रेमसंसार की गतिविधियों के साथबढ़ता, घटता, बदलता रहा..मेरा प्रेमभूमंडलीय प्रकाश की भाँतीअपने स्थान परचिर स्थिर रहा – ना बड़ा ना घटा ..तेरे प्रेम का ज्ञानभौतिक आवरणों सेढका हुआ था,मेरा प्रेम अवर्णीय थाअविनाशी था …तेरा प्रेमअर्थों से भरा

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