मेरे पहाड़ के लोग
पर्वतों के डेरो को छूकर,सुनहरी खिलती धूप जहां थी,आकाश व्यापी चिड़ियों की धुन पर,कल कल नदिया भी थी गीत सुनाती,इस समय चक्र की छाया में नज़ाने सब क्यूं सो गए,हाय! मेरे पहाड़ के लोग सब नज़ाने कहा खो गए।। लकड़ी गोबर के बने घरों में,खिड़की से आवाज लगाते थे।।फिर अम्मा बुबू के साथ बैठ हम,चाय […]