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सड़क

सड़क मेरे गाँव के बीच से गुज़रतीये टूटी-फूटी, मटमैली सड़क |जानती है किस्सा और कहानी,हर अधकच्चे-अधपक्के मकान की,हर खेत और हर खलिहान की | ये सड़क जानती है,कब कल्लू की गैय्या ने बछड़ा दिया था |कब रज्जु भैय्या ने ब्याह किया था |कब बग़ल वाली चाची ने दम तोड़ा था |कब चौरसिया ने अपनी लुगाई […]

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भ्रम

भ्रम ‘कुछ टूटा है, कुछ चुभता है’“क्या सपना है?”अक्सरये होता रहता हैआधी कच्ची नींद में पलते,सपने कितने नाजुक होते,सच के आगे थक जाते हैं,दुनिया से घबरा जाते हैं,सपने ऐसे टूटेंगे,तुम मानने को तैयार नहीं थे,क्यों सपने बुनते हो आखिर?”जो टूटे हैं। ‘बात नहींजो तुम समझे हो।सपना कोई नहीं टूटा है,और ही कुछ टूटा हैलेकिनचुभता है’।“चुभता

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उम्मीद के जुगनु हौसलों में जलाए रखना, a poetry by Neelam Chhibber

उम्मीद के जुगनु हौसलों में जलाए रखना

उम्मीद के जुगनु हौसलों में जलाए रखना हौसला जो डगमगाए कभी, तो उसे हिम्मत से संभाले रखना।आंख से आंसू ना गिरने पाए, उसे पलकों में दबाए रखना ।ढूंढ लेते हैं बहादुर अंधेरों में भी मंजिल,उम्मीद के जुगनू अपने हौसलों में जलाए रखनाजमीं से जुड़कर रहना, पर नजर आसमान पे रखना ।बुलंद इरादों के तरकश में,

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मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है, a poetry by Nitika

मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है

मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है चलती ऐसी जिंदगी की रेखा है,मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।इतनी आसान नहीं होती जिंदगी,ये पता चला जब घर से बाहर मैं निकली।लोगों की बातों में मैंने खुद को फिसलते देखा है,मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।माना कि हार गई

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कोरा कैनवास, a poetry by Ruchita Iyer

कोरा कैनवास

कोरा कैनवास उस कोरे कैनवास पर आज नक्श उतारा तेरा,तसव्वुर में जैसे हो तुम,उसका अक्स बेहद आफरीन है,बस उस तखय्युल को तकमील करना है lनूर कुछ ऐसा है उस तखय्युल का,की कोरे कैनवास पर एक माह-ए-कामिलकी तरह ज़ूरी हो तुम lजिसे कहा ना जा सके वो फितूर हो तुम,बेवज़ह, बस कुबूल हो तुम ,उस कोरे

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Guided by Grace A Journey of Challenges and Blessings, a poetry by Nanki Kandhari

Guided by Grace: A Journey of Challenges and Blessings

Guided by Grace: A Journey of Challenges and Blessings Under the Supreme Teacher’s guiding hand, I’ve learned;To live a life so cherished, so duly earned. Once during a festival, my heart yearned for a temple’s grace,But distant it stood, a journey to embrace.So I asked my mother, she promised we’d go, no delay,But at midnight,

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मेरा वजूद, मेरी पहचान!, a poetry by Shreya Sharma

मेरा वजूद, मेरी पहचान!

मेरा वजूद, मेरी पहचान! बुरा जो देखन मैं चलाबुरा न मिलिया कोईजो दिल खोजा आपनामुझसे बुरा न कोई यूं ही खोजा मैंने ईश्वर कोमंदिर मस्जिद गुरुद्वारे मेंपर भूल गया था मैंवो तो बस्ते ही हैं हमारे में मेरी आत्मा उनका रूप हैमैं खुद उनका निर्माण हूंमेरी भक्ति में उनका नाम हैमैं खुद उनका वरदान हूं

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मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं, a poetry by Juhi Khanal

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं ओझल हूँ आकाश सी, निश्चल हूँ पलाश सी,उन्मुक्त अधर्मी मन हृदय में, धर्म हूँ कैलाश सी,दक्ष की कन्या, शिव की शक्ति,मैं जन्म से ही सुगंधा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ ।पहुँची पिता दक्ष के महा यज्ञ में, पुत्री महा कृतज्ञ मैं,शिव की ना सुनकर अपनी ज़िद पर,

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