लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार
लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार हे मानव!तुम हो प्रकृति के रखवाले,फिर भेदभाव क्यूँ डाले,हमको बेघर करके तुमखुद का घर बनाते होक्यूँ तुम पेड़ों को काटहमको बहुत सताते हो ।जाने कितने लुप्त हुएआगे हम सब भी खो जायेंगेतुम्हारी आधुनिकता के खातिरहम बेमौत ही सो जायेंगे।अब तो हम पे रहम करोअपने स्वार्थी होने पे शरम करोमत भूलो हमको […]
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