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कोई नहीं यही सही, a poetry by Bhargavi Vasaikar, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

कोई नहीं यही सही

कोई नहीं यही सही जो है उसी से खुश हो जाएंगेजो नहीं है उसका ग़म ना मनाएंगेकिस्मत का खेल भी समझ ही जाएंगेहम भी काबिल है कुछ ना कुछ तो करके ही दिखाएंगेक्या गिले क्या शिकवेक्या दुख और क्या सुखअब सब एक जैसे ही लगेंगेकोई नहीं यह पड़ाव भी हम हंस के सह लेंगेमाना समस्याएँ […]

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मर्द, a poetry by Mayank Maheshwari, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

मर्द

मर्द क्या वो ही मर्द है जो रो नहीं सकता,बिना जिम्मेदारी के सो नहीं सकता?पुरुष प्रधान कहते थे समाज को,क्या वो ही मर्द है जो हुकुम चलाता था नारी को?आरक्षण से नारी की सुरक्षा का प्रबंध हो जाता है,क्या वो ही मर्द है जो झूठे आरोप में मारा जाता है?पीड़ा अगर स्त्री को हुई तो

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लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार, a poetry by Nishi Singh, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार

लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार हे मानव!तुम हो प्रकृति के रखवाले,फिर भेदभाव क्यूँ डाले,हमको बेघर करके तुमखुद का घर बनाते होक्यूँ तुम पेड़ों को काटहमको बहुत सताते हो ।जाने कितने लुप्त हुएआगे हम सब भी खो जायेंगेतुम्हारी आधुनिकता के खातिरहम बेमौत ही सो जायेंगे।अब तो हम पे रहम करोअपने स्वार्थी होने पे शरम करोमत भूलो हमको

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मृत्युभोज, a story by Nishi Singh, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

मृत्युभोज

मृत्युभोज मृत्यु एक सत्य!इंसान चाहे जितने भी हाथ पैर मार ले पर इस सत्य से मुख नहीं मोड़ सकता कि एक न एक दिन उसका अंत अवश्य होगा। पर इस सच्चाई को मानने से वह डरता है। डर का कारण होता है उसका मोहबंधन, जिन मोतियों को वह जीवन पर्यन्त धागों में पिरोता है, उसके

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सीख, a poetry by Divya Garg, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

सीख

सीख मैंने आज उस हिमालय को देखा,उसकी ऊंचाइयों पर जाने का सपना देखापर मार्ग में आने वाली बाधाओं से न जाने क्यों डर गई मैं?चलते-चलते न जाने क्यों बार-बार आज गिरने लगी मैं?पर,जब उस नन्ही चींटी को ऊपर चढ़ते देखा,विश्वास से सारी बाधाओं को लड़ते देखा,मैंने उसे बार – बार गिरते और फिर ऊपर चढ़ते

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अनन्त राहें

अनन्त राहें रास्ते रुकते नहीं, मुसाफिर ही रुक जाते हैं,संकरे होते हुए रास्ते पगडंडियों में बदल जाते हैं,पगडंडी के उस पार भी निकल पड़ता है एक रास्ता,कदमों की चाहत हो अगर पगडंडी के पार जाने की।रास्ते रुकते नहीं, मुसाफिर ही रुक जाते हैं,रास्तों के पार किसी को दिखता है कोई चेहरा,कोई देख लेता है बरसों

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नारी जीवन, a poetry by Chanda Arya, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

नारी जीवन

नारी जीवन जीवन का पथ था काँटों भरा,थे पग पग पर अंगार बिछे,वह चलती रही और चलती रही,परिभाषित करती, जीवन है चलने का नाम ।तीव्र वचनों के बाण चले,तीक्षण दृष्टि के वार हुए,वह सहती रही और सहती रही,परिभाषित करती, जीवन है स्पंदन का नाम ।रुक गई …….. वायु शिथिल पड़ जाएगी,रुक गई……….. प्रकृति मृत हो

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श्रद्धा गीत, a poetry by Chanda Arya, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

श्रद्धा गीत भारतवीरों के लिए

श्रद्धा गीत भारतवीरों के लिए कुछ मौन रहे मन केआत्मा को प्रकाशित कर गए,कुछ मौन हुए मुखरजग को आलोकित कर गए।हर रूप, हर ढंग में वेउपस्थिति अपनी दर्ज करा गए,नवदृष्टा , नवसृष्टा बनइस धरा को वन्दे मातरम बना गए,दिखा गए पथजीवन मूल्य सिखा गएlतुम रहो चाहे मौनया मुखरित हो, प्रकट करो,किन्तु एक दिया तो अवश्य

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ज़िन्दगी खूबसूरत है

ज़िन्दगी खूबसूरत है ज़िन्दगी खूबसूरत है पत्ते पर गिरी ओस की तरह,बस नज़र भर देखने की ज़रुरत है।ख़ुशी छुपी है मन में, सीप के अन्दर मोती की तरह,बस उसकी ठंडक महसूस करने की ज़रुरत है।कभी-कभी ज़िन्दगी झुलस जाती है अपनों की दी हुई आग से,उस आग में तप कर कुंदन बन जाने की ज़रुरत है।कौन

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हाँ ........साँस चल रही है अभी, a poetry by Chanda Arya, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

हाँ साँस चल रही है अभी

हाँ साँस चल रही है अभी जब मुस्कुराहट आती है होठों पर,लगता है साँस चल रही है अभी,बेजान सी ज़िन्दगी फिर से जीने लगती है जब………………….उसकी बेटी कहती है भविष्य के प्रश्न पर……माँ, मैं तो एस्ट्रोनॉट बनूँगी,फिर माँ की आँखों में तिरते डॉक्टर के सपने को,ताड़ते हुए मासूमियत से कहती है;अगर टाइम मिला…….. तो डॉक्टर

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