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मेरा वजूद, मेरी पहचान!, a poetry by Shreya Sharma

मेरा वजूद, मेरी पहचान!

मेरा वजूद, मेरी पहचान! बुरा जो देखन मैं चलाबुरा न मिलिया कोईजो दिल खोजा आपनामुझसे बुरा न कोई यूं ही खोजा मैंने ईश्वर कोमंदिर मस्जिद गुरुद्वारे मेंपर भूल गया था मैंवो तो बस्ते ही हैं हमारे में मेरी आत्मा उनका रूप हैमैं खुद उनका निर्माण हूंमेरी भक्ति में उनका नाम हैमैं खुद उनका वरदान हूं […]

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मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं, a poetry by Juhi Khanal

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं ओझल हूँ आकाश सी, निश्चल हूँ पलाश सी,उन्मुक्त अधर्मी मन हृदय में, धर्म हूँ कैलाश सी,दक्ष की कन्या, शिव की शक्ति,मैं जन्म से ही सुगंधा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ ।पहुँची पिता दक्ष के महा यज्ञ में, पुत्री महा कृतज्ञ मैं,शिव की ना सुनकर अपनी ज़िद पर,

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कोरोना आप बीती, a poetry by Gazala

कोरोना आप बीती

कोरोना आप बीती कोई इस साल भी घर नही पहुँचाकिसी के हिस्से का प्यारआज भी अधूरा रह गया।किसी के घर मे गुंजी है चींखेअपनों के खोने कीकिसी का अपने घरवापस आने से आबाद हो गया।।किसी के गहरे सूट कारंग सफ़ेद हो गयाकिसी के चेहरे कीमुस्कान फ़ीकी हो गयी ।।कहीं बरसा है प्रेमबसंत की रिमझिम फुहार

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बदबू, a story by Sanket karjule

बदबू

बदबू आनंद आने वाला था। ऐसा नहीं था कि वह दोनों पहली बार मिल रहे थे। फिर भी पता नहीं क्यूँ निद्रा को बेचैनी हो रही थी। हालांकि आनंद ने ही उसे बुलाया था। जबकि वह अभी तक आया नहीं था। वह पार्क में बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी। आनंद आया। हाथ को पीछे

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आदत, a poetry by Sheena Sarah Winny

आदत

आदत बनाकर खुशी को आदतजिंदगी बनेगी सुहानीदिन नहीं कटतीजंजीरों से दबकर ।रेत के जैसीखुशी के पलसमेटे रखोहीरे की तरह –आदत न छोड़नाजिंदगी को पिरोनासुरों की अनदेखी तार से ।खुशहाली आएमन के प्याले सेछलके जब खुशीसावन की बूंदें जैसी। Sheena Sarah WinnySheena Sarah Winny is an educator, writer and poet. gyaannirudra.com/

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ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो, a poetry by Kuntal Sanjay Chaudhari

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो ज़िन्दगी के दायरे में लिपटी थी वो,किसी तोहफे से कम नहीं थी वो।सूरज के किरणों को छूकर रोज,अपने ख्वाबों को बुनती थी वो।कभी पूरे हों, इसकी उम्मीद तो नहीं,पर सपने देखने की चाह रखती थी वो।रात को करवटे बदलते हुए,उस एक दिन की राह देखती थी वो।हवा में झूमते हुए,अपने

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नारी और समाज एक परिचय, a poetry by Shivam Tiwari

नारी और समाज : एक परिचय

नारी और समाज : एक परिचय ए नारी तू साड़ी पहने ,प्रतीत होती सजीव है क्यासहती है तू दुर्व्यवहार ,लगता है निर्जीव है क्याचली अलंकृत होकर ऐसे ,प्रतीत हुआ सजीव है क्यासहती जब तू अत्याचार ,लगता है निर्जीव है क्या देवी नारी, माता नारी ,फिर से लगा तू सजीव है क्याआंखों से जब स्वप्न हटा

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अकेला बगुला, a poetry by Gaurav Kumar

अकेला बगुला

अकेला बगुला देखा एक शाम एक बगुले कोआकाश में अकेले उड़ते,ना जाने क्या पाने की ज़िद लिएहवा के विरुद्ध मुड़ते!छोड़ा इसके साथियों ने है इसका साथ,या ना रख पाया उनके बीच ये अपनी बात!सोचता हूँ,काफिर बन उड़ चला है,या बना अपने मन का जोगी,ना जाने काफिले से अलग होने कीक्या वजह रही होगी!शायद नए मानसरोवर

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The Loneliness of Social Media, a poetry by Aarna Dutt

The Loneliness of Social Media

The Loneliness of Social Media The Loneliness of Social MediaIn the glow of screens, we find our placeConnected yet distant, in this digital placeScrolling through feeds, a never-ending streamBut beneath the surface may loneliness gleamComments and shares, a transitory highBut when it all turns off, we’re all left to sighComparing lives that aren’t so real,Forgetting

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ऐसी तू बांसुरी, a poetry by Nikhil Tewari

ऐसी तू बांसुरी

ऐसी तू बांसुरी ऐसी तू बांसुरी। सीधी सरल सुरीली तू। कर्णप्रिय रसीली तू। ऐसी तू बांसुरी। होंठों से छुई तू। हृदये में बस गयी तू। ऐसी तू बांसुरी। मेरी वन्दनी तू। कृष्ण की संगनी तू। ऐसी तू बांसुरी। पंचतत्व से बनी तू। देव लोक की ध्वनि तू। ऐसी तू बांसुरी। मेरा ध्यान तू मेरा योग

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