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Reminiscence, a poetry by Jesna John

Reminiscence

Reminiscence There are some thoughts that can’t be shared.There are some cries that can’t be heard.There are some ties that can’t be mend.I am my lord,I am my slave,I am a lone soldier,I am my healer,My protector,When I smile the world will smile.I see,the beauty of all.My world is built by me.Inside and out,I can

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स्त्री, a poetry by Himanshi Gautam

स्त्री

स्त्री स्त्री मात्र शब्द नही है ईश्वर कीसब कृतियो मे है सबसे खूबसूरत कृतिकिसी के घर आंगन की तुलसी हैतो किसी की बगिया का गुलाब हैस्त्री है तो संसार है स्त्री है तो संस्कार हैस्त्री मात्र मानव नही, करुणा, ममतासहनशीलता, दया, प्रेम, गरिमा की देवी हैस्त्री है गर पावन धरा पर, सरस्वती, लक्ष्मीतो है दुर्गा,चंडी,काली

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इंसान और इंसानियत, a poetry by Soma Roy

इंसान और इंसानियत

इंसान और इंसानियत इंसान कौन हैं? इंसानियत क्या है?जो इंसान से सिर्फ प्यार करे?या जो इंसानियत पर कब्जा करे?अपनो से प्यार करना आसान हैखून का रिश्ता निभाना भी जायज हैपर जो अपनो से परे भी किसी को अपनाएउसे हम और क्या कहे?पौधो की जो भाषा समझेबेजुबान की जो आदत समझेसमझे जो दर्द किसी लाचार काउसी

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तुषारिका, a poetry by Asambhava Shubha

तुषारिका

तुषारिका कोई फर्क होगा संपत्ति और जिम्मेदारी में,एक संजोयी और दूसरी निभायी जाती है,वैसे कई रंग हैं इन् दोनों की भिन्नता को दर्शाते हुए,और समरूपता शायद एक- मूल ।जनन की मूल जननी, अथवा प्रजनन की स्रोत ज्वाला,प्रकृति की संगिनी, जिसने वात्सल्य और प्रेरणा को अटूट बंधन में है बाँधा ;वो कभी वृक्षों को आलिंगन में

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A Survivor, Poetry by Indrani A. Deo

A Survivor

A Survivor A single second can shatter your future,Turn your life into a living nightmare,You fear what’s next- life or death,The clock is ticking with every breath,Finding chances lower every stage,Trying to break from this torturous cage,Staring into the mirror and finding a skeleton,A muddled head, a life forgotten,Sobbing and crying, remembering golden times,This pain

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नारी शक्ति, poetry by Manisha Chauhan

नारी शक्ति

नारी शक्ति वो सौ जख्म खाकर भी सब सहती हैवो नारी है जो ना कभी डगमगाती हैमाथे पर बिंदी, मांग में सिन्दूरलगाके वो जगमगाती है।वो नारी है जो कभी ना घबराती हैसाहस इतना देखो हर कोई देखेघबराते हैंवो नारी है जो कभी ना मात खाती हैवो जब अपने पर बन आये तो अपने देश या

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तीन रंग से बनता है, Poetry by Sudhir Kumar Pal

तीन रंग से बनता है

तीन रंग से बनता है तीन रंग से बनता है,और चौथे से फिर सजता है…जय घोष भारत माता का,इसके सीने में गरजता है…तू चाहे कितना लाल करे,मेरे खून से इसके आँचल को,ये रखता है रंग केसररया,जो हर पल और निखरता है…तू काला कितना दामन कर,कितना ही इसे तू तार कर,ये रखता है रंग बिलकुल चिट्टा,चारों

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कुल्हाड़ी से कलम तक by Shalini Singh

कुल्हाड़ी से कलम तक

कुल्हाड़ी से कलम तक इक रोज़ बैठी गलियारों से,देखा था उसे चौराहे पर ।हो दूर उजाले से बहुत,देखा था उसे अंधियारे पर।उसकी भुजाओं की ताकत में,मुझको मां दुर्गा दिखती थी।उसकी मेहनत की परिभाषा,साहसी, वीरांगना दिखती थी।अपने कपाल की ताकत से,वो ढोती थी बालू मिट्टी |पीड़ा को छिपा दुःख दर्द बहा,न रोती थी, न खोती थी।जो

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आख़िरी किरण by Raj Shukla

आख़िरी किरण

आख़िरी किरण बेरंग सी इस जिंदगी में, भर गयावो रंग हो तुम,दूरियां भी है बहुत यूं,उन दूरियों का संग हो तुम ।दिल भी मेरा क्या करे,इस प्यार का मलंग हो तुम,आवेश में-जिसके हम बहे,वो एक नई तरंग हो तुम ।हूं अव्यवस्थित मैं अगर तो,जीने का एक ढंग हो तुम,ना-माशुका ना-प्रेमिका हो,मेरे-देह का एक अंग हो

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