क्षितिज राह, a poetry by Shrikant Chaini, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

क्षितिज राह

क्षितिज राह कार्यकुशल स्वाभिमानी नेत्रों से,सर्व मन समभाव चाह में ।उठा कलम आगे बढ़ चल अब,झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।बागवानों में फूलों के सम,सजा स्वप्न गिली निगाह में ।झोंक द्रव्य कर पलट काया अभी,झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।अश्मित कर अपने नगरों को,विकट डाल अब ज्वलन्त दाह में ।कर्मठता का परिचय देकर,झुका […]

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