Poetry writing

आलोचना

आलोचना से कर्ण-पट को बंद करके क्या मिलेगा?

अश्रुओं से “चक्षुओं” को द्रवित करके क्या मिलेगा?

विरहाग्नि का दमन कर,उपलब्धियां तुझमें बहुत हैं

आलोचना को सहन कर,खूबियां तुझमें बहुत हैं

कायर नहीं, तुम वीर हो, दमनात्मक शमशीर हो

दुःशासन को खींचने दो, कृष्ण का तुम “चीर” हो

“आलोचना इक जौहरी” प्रतिभामयी हीरा तराशे

भावना को ठेस दे, पर व्यक्ति का जीवन बना दे

उपलब्धियां जब अधिक हैं, आलोचना क्यों कम रहे

आलोचकों की बात सुनकर, व्यर्थ में क्यों थम रहे

स्तब्ध जल में पत्थरों को “फेंकने वाले” बहुत हैं

सागरों के ज्वार में “फेंका हुआ” टिकता नहीं

आलोचना ही सत्य है, सुनना तुम्हारा धर्म है

व्यथित होकर बैठना, भीरुओं का कर्म है

अवनि कहे, अम्बर कहे ये सत्य है, हाँ सत्य है

पुलिकत रहो, आगे बढ़ो, बढ़ना तुम्हारा कृत्य है

सत्य को न मानकर, आखिर तुम्हें अब क्या मिलेगा

आलोचना से कर्ण पट को, बंद करके क्या मिलेगा-2

©कार्तिक रिछारिया

Open chat
Hello
Chat on Whatsapp
Hello,
How can i help you?