कोरोना आप बीती
कोई इस साल भी घर नही पहुँचा
किसी के हिस्से का प्यार
आज भी अधूरा रह गया।
किसी के घर मे गुंजी है चींखे
अपनों के खोने की
किसी का अपने घर
वापस आने से आबाद हो गया।।
किसी के गहरे सूट का
रंग सफ़ेद हो गया
किसी के चेहरे की
मुस्कान फ़ीकी हो गयी ।।
कहीं बरसा है प्रेम
बसंत की रिमझिम फुहार से
कहीं सवेरे को भी
आने में देर हो गयी।।
में गज़ाला, मेरठ की निवासी हूँ. मेने वकालत की शिक्षा ग्रहण की है में मेरठ बार एसोसिएशन में पंजीकृत अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हूँ मै मेरठ कॉलेज मेरठ से एल एल एम की अंतिम वर्ष में हूँ मेने मेरठ कॉलेज मेरठ में भी काव्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।