क्यों बहता हैं तू मेरे अंदर, क्यों तू मुझे चुराता है
निशब्द पन्नों पर तू खुद को क्यों मुझसे लिखवाता है
कसमसाती सी मन की गलियों में ख़्याल तेरा, हर रोज मुझसे टकराता है
यूं रुठ के जाना तेरा मुझसे, मन को मेरे आज भी तड़पाता है
वक्त दूर चला जाता है बेशक, मगर मन में ज़िक्र शेष रह जाता है
अतीत निखर जाता है मेरा, जब शाम तेरे रंग से भीग के आता है
हरसिंघार के फूलों जैसा, तू मेरी रातों में बिखर जाता है
खुद को जो कभी ढूंढती हूं मैं, तेरा ही बस अक्स नजर आता है
तू मेरी जुल्फों में उलझकर, एक सुलझा सा अहसास बन जाता है
क्या बताऊं की हंसते हंसते, तू कैसे आंखों से छलक जाता है
तू दर्द बनकर भी बहता है मुझमें, और चैन भी तू ही बन जाता है
शहर बसाकर मुझमें खुद का, क्यों मुझमें बसना चाहता है
क्यों बहता हैं तू मेरे अंदर, क्यों तू मुझे चुराता है
निशब्द पन्नों पर तू खुद को क्यों मुझसे लिखवाता है
कसमसाती सी मन की गलियों में ख़्याल तेरा, हर रोज मुझसे टकराता है
यूं रुठ के जाना तेरा मुझसे, मन को मेरे आज भी तड़पाता है
i am a music student Indian classical vocal in bhatkhande University Lucknow , and Hindi poet