यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्रान ।।
स्वर्णिम “अतीत” के चित्र , देश भारत महान ।।
हमने इसको इतिहास झरोखों से देखा ।
कहता वैसा ही पुरातत्व विद का लेखा ।
यह मातृ भूमि स्तुत्या है , जननी समान ।।
यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्रान ।।
यह वीर प्रसवनी , नीति – न्याय उर्वरा धरा ।
यह शक्ति स्रोत है , कण- कण ऊर्जा ओज भरा ।
सागर से गहरा धैर्य , हिमालय स्वाभिमान ।।
यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्रान ।।
इस भू पर जन्मे , तपसी ,त्यागी ,ज्ञानवान ।
इस पर आये अवतार , बने पग के निशान ।
वे करें असुर जन नाश , साधु जन परित्रान ।।
यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्रान ।।
अरविन्द घोष , नेता सुभास , देखे गाँधी ।
देखी पटेल , शेखर , अब्दुल्ला की आँधी ।
झूले फाँसी के तख्त , हजारों नौजवान ।।
यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्राण ।।
देखी नव पीढी पतित , वर्ण शंकर होती ।
इस आजादी के बाद , अस्मिता को खोती ।
गढते देखे नव कदाचार के कीर्ति मान ।।
यह धर्म धरा है वसुन्धरा की महा प्रान ।।
देखा संसद में , नेताओं का होहल्ला ।
कर दिये विवादी राम ,जिहादी हैं अल्ला ।
है तम भविष्य पर घिरा , सुलगता वर्तमान ।।
यह धर्म धरा है , वसुन्धरा की महा प्रान ।।
में अनूप तिवारी बी.ए.(ऑनर्स)हिंदी साहित्य का छात्र हूँ।मुझे कविताएं लिखने में अधिक रुचि है।