नारी और समाज : एक परिचय
ए नारी तू साड़ी पहने ,प्रतीत होती सजीव है क्या
सहती है तू दुर्व्यवहार ,लगता है निर्जीव है क्या
चली अलंकृत होकर ऐसे ,प्रतीत हुआ सजीव है क्या
सहती जब तू अत्याचार ,लगता है निर्जीव है क्या
देवी नारी, माता नारी ,फिर से लगा तू सजीव है क्या
आंखों से जब स्वप्न हटा तो फिर से लगा निर्जीव है क्या
ताड़ रहा जब वह नर तुझको तब लगा सजीव है क्या
नज़रे झुकाए जब बढ़ गई आगे, ऐसा लगा निर्जीव है क्या
आई जब सज साजन के घर ऐसा लगा तू सजीव है क्या
निकल न सकी चौखट के बाहर लगता है निर्जीव है क्या
कितनो कि तू प्रिया है नारी हमें लगा तू सजीव है क्या
लोगो ने ऐसा हक दिखाया, लगता है निर्जीव है क्या
निकलूं कैसे इस तंत्र से तू ही मुझको समझा दे
अपने निर्जीव सजीव की गाथा खुद ही मुझको बतला दे
धर्म हो तेरा चाहे जो भी नारी तू तो नारी है
कर्म हो तेरा चाहे जो भी, नारी तू तो भाग्य की मारी है ।
Hey, I’m diving into the world of law as I pursue my BALLB degree, but my heart beats for more than just statutes and cases. I find solace and joy in the intricate dance of words, whether it’s through the rhythm of Shayari or the canvas of poetry. Join me as I navigate the legal labyrinth while weaving tales with pen and paper.”
अद्भुत रचना
शानदार पंक्तियाँ
एक प्रेरणादायक सन्देश
वास्तविकता को दर्शाते शब्द
बेहतरीन प्रदर्शन…..
यह कविता नारी के साथ जुड़े स्थितियों और भावनाओं को जताती है। इसमें नारी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास किया गया है, जैसे कि उसकी सजगता, सहनशीलता, और समाज में उसके आदर्श के प्रति जिम्मेदारी। प्रतिष्ठान और स्थिति के बीच की उसकी दुविधा को व्यक्त किया गया है। इसके माध्यम से, आप नारी के महत्व और उसके साथ होने वाले व्यवहारिकता के विषय में चिंतित हैं ,अत्यंत सराहनीय कविता !
आपकी पंक्तियों ने ह्रदय को छू लिया|
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति….. नारी के जीवन का संपूर्ण चित्रण.……