नसीब, poetry by Minkal Narula

नसीब

नसीब

जानती हूं मुश्किल है
पर सबका यही नसीब है।
जो आता है एक बार
उसके जाने की भी लकीर है।
जो जमीन पर लाखो का प्यारा है
उससे खुदा भी उतना ही प्यार करेगा
इस दुनिया में इतना ही था
अब वो खुदा के घर रहा करेगा।
जानती हूं आसान नहीं
पर नियम चला आ रहा है
जुदाई का यह सिलसिला
बहुत मुश्किल होता जा रहा है।
जो है साथ उनका ध्यान रखो,
उनकी सलामती की दुआ करो
जो साथ नही है उनसे भी खूब बातें करो
खुदा तो है वो तुम्हारी हर बात उन तक पहुंचाएगा
तुम बात तो करो उनसे
वो आसमान से भी मुस्कुराएगा।
कोई किसी का दर्द समझ जरूर सकता है
पर महसूस नहीं कर सकता।
इसलिए संभालना पड़ेगा खुद को
उस खुदा के भरोसे
वो खुदा ही है जो कभी दिखावा नही करता।

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