नारी जीवन
जीवन का पथ था काँटों भरा,
थे पग पग पर अंगार बिछे,
वह चलती रही और चलती रही,
परिभाषित करती, जीवन है चलने का नाम ।
तीव्र वचनों के बाण चले,
तीक्षण दृष्टि के वार हुए,
वह सहती रही और सहती रही,
परिभाषित करती, जीवन है स्पंदन का नाम ।
रुक गई …….. वायु शिथिल पड़ जाएगी,
रुक गई……….. प्रकृति मृत हो जाएगी,
नव जीवन का संचार न होगा,
इस धरा का उद्धार न होगा,
वह मिटती गई और मिटती गई,
परिभाषित करती, जीवन है नव प्राण देने का नाम ।
I am an educator working in the University Library, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand.