नारी शक्ति, poetry by Manisha Chauhan

नारी शक्ति

नारी शक्ति

वो सौ जख्म खाकर भी सब सहती है
वो नारी है जो ना कभी डगमगाती है
माथे पर बिंदी, मांग में सिन्दूर
लगाके वो जगमगाती है।
वो नारी है जो कभी ना घबराती है
साहस इतना देखो हर कोई देखे
घबराते हैं
वो नारी है जो कभी ना मात खाती है
वो जब अपने पर बन आये तो अपने देश या अपने सम्मान
के लिए लड़ जाती है
वो नारी है जंग हार कर भी जीत जाती है
वो कभी अंतरिक्ष पर जाती है
तो कभी चंद्रयान पर नज़र आती है
वो नारी है जो हर क्षेत्र में आगे बढ़ती है
कभी युद्ध लड़कर
वो झाँसी की रानी तो कभी
देवी अहिल्या कहलाती
तो कभी रानी कमलापति कहलाती हैं।
वो नारी है जो कभी न डगमगाती है

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