बचपन
छोटे छोटे कदम रखते चलना इन्होने सीखा,
जरा जल्द ही रोटी कमाने के
सवाल ने है इनको घेरा
लाड़-दुलार वाला यह बचपन किसी के लिए
जिम्मेदारी का बोझ बन गया है,
पढ़ाई लिखाई की उम्र में
कोई बढ़ों का हाथ बटा रहा है।
शिक्षा और खेलकूद वाला बचपन यहाँ
सभी के नसीब में कहा
मासूम बचपन यह इन का
जग की भीड़ मे खो रहा
चमकती हुई आँखे ये
कई ख्वाब देखती होंगी,
चहरे की मुस्कान यह
कई परेशानियों से जुझती होगी।
हिस्से की खुशियाँ इन के
इन्हें लौटानी जरूरी है
समाज के इस जरूरी हिस्से को
समाज के ध्यान की जरूरत है
थोड़ा लाड़, प्यार और दुलार देंगे
तो फिर खिल उठेगा यह बचपन
नई आशाएँ लिए
Poetry is one of my hobbies. I love to write poetry because it gives me a great way to express my thoughts.