बेटी
सब की पसंद नापसंद का खयाल रखती हूं,
सब की सारी चीजो को संभाल रखती हूं।
मेने रखे थे कहा ख्वाब मेरे में ही भूल जाती हूं,
बेटी हूं मै, अकसर खुद को समझा लेती हूं।।
बहेना था नदियों मैं, उड़ना था आसमानों में,
मुझे मचलना था, इन आजादी की हवाओ मैं ।
ये ज़मीं तो बेटों की है, उपकार से चल लेती हूं,
बेटी हूं मैं, अक्सर खुद को समझा लेती हूं।।
फूल सा खिलना था, कुछ बनने का जज़्बा था,
अपनी हक की बातों पे सबने बचपन से टोका था।
आदत पड़ गई, अब तो हस के सब सेह लेती हूं,
बेटी हूं मै, अक्सर खुद को समझा लेती हूं।।
बराबरी कहा मांगी, बस अपनी मर्ज़ी से चलना था,
ईश्वर क्यू बनाया बेटी?, मुझे भी खुलके जीना था । ।
हस कर मिलती सबसे, मैं अकेले मैं ही रो लेती हूं,
बेटी हूं मै अकसर खुदको समझा लेती हूं।।
में एक लेखक हू, में हिंदी और गुजराती भाषा में कविता, वार्ता, गजल, लेख आदि का लेखन करती हू।