माँ, a poetry by Anshul Kaushik, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

माँ

माँ

चाहे कितनी ही हो फिक्र भले
वो बिलकुल नहीं दिखती है,
माँ है ना…
ऐसे ही अपने अर्थ को दर्शाती है…
लगे बुरा किसी बात का तो,
वो हमको नहीं बताती है
चाहे नम हो जाएँ आँखें
कभी वो मुँह धोकर आ जाती है…
हर छोटी छोटी बातों पर
वो मुझे बैठ समझती है,
तू भोली है ये कहकर
मुझे दुनिया से अवगत करवाती है…
घर में रौनक भी आप से ही,
आप ही से उजाला है
मेरी तमाम परेशानियों में
आपने ही मुझे संभाला है…
मेरे कहने से पहले ही
माँ आप सब समझ जाती हो,
जब भी चाहिए हो साथ
खड़े हर दम ही आगे पाती हूँ…
जब निकल पड़े है घर से तो
ये बात समझ में आती है,
माँ चाहे डाँट ले कितना ही
पर भूखे नहीं सुलाती है…
चाहे बात हो भूत की
या चाहे हो वर्तमान,
माँ की ममता
सदैव ही पाती है सम्मान…

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