ये ज़िन्दगी..
जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..
तू उड़ जाना हवा का हाथ पकड़ के..
सुलझा देना बादलों की लटों को..
बहुत हैं, उलझी हुई
ये ज़िन्दगी…..
जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..
तू बह जाना झरने की बूँदों के साथ..
सिमटा लेना अपनी अंजुरी में,
बहुत है, भटकी हुई
ये ज़िन्दगी…
जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..
तू चल देना घास की नरमियों में,
पकड़ लेना उन अठखेलियों को..
बहुत हैं, मस्ती भरी
ये ज़िन्दगी..
जब कभी अजनबी सी लगे ये ज़िन्दगी..
जब कभी भटकी सी लगे ये ज़िन्दगी..
जब कभी उलझी सी लगे ये ज़िन्दगी..
तू आ जाना मेरी सोहबतों में,
ले लेना मेरी तन्हाइयों को…
बहुत हैं ज़िन्दगी भरी…
अपनी सी है ये ज़िन्दगी..मिलती सी है ये ज़िन्दगी..
ये ज़िन्दगी..
सुलझी हुई..
मस्ती भरी… है
ये ज़िन्दगी….
हाँ तेरी….. मेरी ज़िन्दगी…
I am an educator working in the University Library, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand.