श्रेष्ट कवि
समर में उतरी हूं अब
अमर नहीं मृत्युंजय बन जाऊंगी
श्रेष्ट कवि का दर्जा जब
इतिहास में मैं पाऊंगी।
वर्तमान में तपता कोल हूं अब
स्मरण रखना सब
भविष्य का नूर बन मैं आऊंगी।
हताश रहेगा जग भी उस दिन
जब कोशल अपना मैं दिखाऊंगी।
खुशी के अश्रु से होऊंगी लथ पथ
जब चोंटी के प्रथम भाग पर चढ़ जाऊंगी,
अर्थात श्रेष्ट कवि का दर्जा जब
इतिहास में मैं पाऊंगी।

मासूम कवि