श्रेष्ट कवि, a poetry by Komal Parmar, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

श्रेष्ट कवि

श्रेष्ट कवि

समर में उतरी हूं अब
अमर नहीं मृत्युंजय बन जाऊंगी
श्रेष्ट कवि का दर्जा जब
इतिहास में मैं पाऊंगी।
वर्तमान में तपता कोल हूं अब
स्मरण रखना सब
भविष्य का नूर बन मैं आऊंगी।
हताश रहेगा जग भी उस दिन
जब कोशल अपना मैं दिखाऊंगी।
खुशी के अश्रु से होऊंगी लथ पथ
जब चोंटी के प्रथम भाग पर चढ़ जाऊंगी,
अर्थात श्रेष्ट कवि का दर्जा जब
इतिहास में मैं पाऊंगी।

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