सड़क, a poetry by Garima Mishra, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

सड़क

सड़क

मेरे गाँव के बीच से गुज़रती
ये टूटी-फूटी, मटमैली सड़क |
जानती है किस्सा और कहानी,
हर अधकच्चे-अधपक्के मकान की,
हर खेत और हर खलिहान की |

ये सड़क जानती है,
कब कल्लू की गैय्या ने बछड़ा दिया था |
कब रज्जु भैय्या ने ब्याह किया था |
कब बग़ल वाली चाची ने दम तोड़ा था |
कब चौरसिया ने अपनी लुगाई को छोड़ा था |

तिवरिया के आम के बाग़ से
रेंगती हुई ये टेढ़ी-मेढ़ी सड़क..
सीधे निकलती है उस चौराहे पर,
जहाँ औंधे मुँह गिरा था श्यामलाल,
फिसलकर अपनी फटफटीया से |
जहाँ मिले थे नैन भोलू नाई के रमकलिया से |

इसने देखे हैं..
बरगद के नीचे चबूतरे पर बैठे पंचों के चेहरे ।
देखी हैं घर-घर की मुस्कराहटें और घाव गहरे ।
हर चूल्हे से निकलता धुआं भी |
गर्मी में झुलसता-रिसता कुआँ भी |
नन्हे शोर से गूंजती स्कूल की कच्ची दीवार भी |
बहाव के साथ बदलती मांझी की पतवार भी |

नहीं छिपी है इसकी नज़रों से..
नदिया से लौटती सर पर सजी गघरी |
और कटाई के बाद सूखती जवार-बजरी |
द्वारे पर बैठी आँखों में डाकिये का इंतज़ार |
आँगन में धूप सेंकते पापड, मिर्ची, अचार |

जब गए साल खेतों में मोर नहीं झूमा था ।
और बूँदों ने फसलों को नहीं चूमा था…
इसकी पथरीली आँखे भी भर आयीं थीं |
अपनी बेबसी पर तब ये भी लजाई थी |

इस साल किसानों की फिर उम्मीद बँधी है |
गाँव की हर आँख आसमान पर जड़ी है |
इस मूक पहरेदार का आज रोता कलेजा है |
दुआओं का लिफाफा इसने बादलों को भेजा है |

मेरे गाँव के बीच से गुज़रती,
ये सड़क सब जानती है..
सब जानती है ये सड़क…

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