अजन्मी कहानी

अजन्मी कहानी

क्या वायुमंडल में नहीं हवा,
जहाँ मैं साँस ले सकूँ;
क्या पृथ्वी पर नहीं जगह,
जहाँ मैं पांव रख सकूँ;
भ्रूण हूँ तो क्या नहीं अस्तित्व है मेरा,
कन्या हूँ तो क्या नहीं औचित्य है मेरा।
अस्तित्व मेरा क्या है, माँ की आखों में देखो,
औचित्य मेरा क्या है, तुम उसके हृदय से पूछो।
हत्या एक की करते हो, दो प्राण लेते हो,
मनुष्य होकर भी भाग्यविधाता बनते हो।
आधुनिक हो बहुत, चाँद तारे छूते हो,
कन्या घर में आती है तो शोक मनाते हो।
हे समाज! सुन लो आज मेरी ये करुण पुकार,
मैं भी जीवित हूँ, मुझे भी पीड़ा का अहसास,
मत करो अब ये भेदभाव , मुझे संसार देखने दो,
मेरी माँ के सपने को मुझे पूरा करने दो।

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