अनदेखे अहसास
क्या तुमने कभी देखे हैं किसी की आँखों में दीये जलते हुए,
हाँ वो जलते हैं,
जब आँखों को दिख जाता है कोई अपना सा चेहरा,
ज़िंदगी के अकेलेपन में एक पहचाना सा चेहरा ।
क्या तुमने कभी देखे हैं किसी के होंठों पर फ़ूल खिलते हुए,
हाँ खिलते हैं फूल,
जब होंठों पर आता है नाम उसका,
ज़िन्दगी के सूनेपन में आवाज़ देता नाम उसका ।
क्या तुमने कभी सुना है किसी के मन को गुनगुनाते हुए,
हाँ गुनगुनाता है मन,
जब मन को मिल जाते हैं सुर और ताल,
ज़िन्दगी की वीरानियों में उसके बोलों के सुर और ताल।
क्या तुमने कभी देखा है किसी को आसमान में उड़ते हुए,
हाँ उड़ता है अस्तित्व,
जब महसूस होता है हाथों में हाथ उसका,
संभाले हुए अस्तित्व ।
तब वही हो जाता है आहिस्ता -आहिस्ता,
टिमटिमाता हुआ, आँखों का दीया,
होठों का खिलता हुआ फूल,
मन की गुनगुनाहट वाला गीत,
ज़िन्दगी का सार नहीं बस वही ज़िन्दगी हो जाता है ।
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I am an educator working in the University Library, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand.