Poetry writing

अब चलो मान भी जाओ न

अब चलो! मान भी जाओ न

क्या मन में मेरे मैल भरा, या दूषित सीरत है मेरी?

तुम हर पल मुझसे खफ़ा रहो, क्या फूटी किस्मत है मेरी?

व्यथा अगर हो कुछ तेरी, मैं दूर उसे कर जाऊंगा

मैं दोषी हूँ क्या? आज बता दो, घुट-घुट न जी पाऊंगा।

वो पहले वाले प्रेमगीत, फिर झूम-झूम के गाओ न

अब देर न कर, थोड़ा हंस दो,

अब चलो! मान भी जाओ न-2।

चम्पा जैसा चेहरा तेरा, काले काले केश घने।

अधर की लाली कंचन जैसी, हांथ में कंगन बने ठने।

सतरंगी रंग नखों में तेरे, इंद्रधनुष सा लगता है

नयनों का काजल घना घना, घनघोर घटा सा लगता है

वो हिरनी जैसा चाल-चलन, वैसा ही चलके दिखाओ न

न और सता इस दोषी को, अब चलो! मान भी जाओ न-2।

©कार्तिक रिछारिया

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