एक जुदा सा ख्याल
जिंदगी यूं तो मिली है कतरा -क़तरा,
क्यूँ न उन कतरों को जोड़ कर एक ताजमहल बनाऊँ ।
सिमटा लूँ, सहेज लूँ, सभी मुस्कानों और आँसुओं को,
क्यूँ न गूँथ कर सबको कुछ मीनारें बनाऊँ ।
दिल के आईने में हैं जो गुमशुदा से चेहरे,
हैं जिंदगी में घुले पर जुदा से चेहरे,
क्यूँ न उन्हें फिर से रंग कर एक कोलाज बनाऊँ ।
कतरा -कतरा जोड़कर एक ताजमहल बनाऊँ ।
ज़िंदगी है रंगमंच, कह गया है कोई,
जिंदगी है इम्तहान, कहता है कोई,
अपना -अपना फ़लसफ़ा है इस एक ज़िन्दगी पर,
क्यूँ न उन फ़लसफ़ों को बुन कर एक कहानी बनाऊँ ।
ज़िंदगी है दोस्त या दुश्मन है कोई,
गुलदस्ता है फूलों का या चुभन है कोई,
क्यूँ न सब उलझनें छोड़कर एक नई राह बनाऊँ,
कतरा -कतरा जोड़कर एक ताजमहल बनाऊँ ।

I am an educator working in the University Library, G.B. Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand.