कोरा कैनवास
उस कोरे कैनवास पर आज नक्श उतारा तेरा,
तसव्वुर में जैसे हो तुम,
उसका अक्स बेहद आफरीन है,
बस उस तखय्युल को तकमील करना है l
नूर कुछ ऐसा है उस तखय्युल का,
की कोरे कैनवास पर एक माह-ए-कामिल
की तरह ज़ूरी हो तुम l
जिसे कहा ना जा सके वो फितूर हो तुम,
बेवज़ह, बस कुबूल हो तुम ,
उस कोरे कैनवास पर l
सहर में, शफक में, बस तुम हो,
तो सोचो उस कोरे कैनवास पर,
तुम्हारा शरर कितना मुक़द्दस होगा l
बस अब उस कैनवास पर मुसव्विर बनकर,
तुम्हें जो मुक्कमल किया है,
वो बेहद पाक, नायाब और
उंस से भरा एक शाहकार है ll
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