कोरोना आप बीती, a poetry by Gazala

कोरोना आप बीती

कोरोना आप बीती

कोई इस साल भी घर नही पहुँचा
किसी के हिस्से का प्यार
आज भी अधूरा रह गया।
किसी के घर मे गुंजी है चींखे
अपनों के खोने की
किसी का अपने घर
वापस आने से आबाद हो गया।।
किसी के गहरे सूट का
रंग सफ़ेद हो गया
किसी के चेहरे की
मुस्कान फ़ीकी हो गयी ।।
कहीं बरसा है प्रेम
बसंत की रिमझिम फुहार से
कहीं सवेरे को भी
आने में देर हो गयी।।

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