क्षितिज राह
कार्यकुशल स्वाभिमानी नेत्रों से,
सर्व मन समभाव चाह में ।
उठा कलम आगे बढ़ चल अब,
झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।
बागवानों में फूलों के सम,
सजा स्वप्न गिली निगाह में ।
झोंक द्रव्य कर पलट काया अभी,
झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।
अश्मित कर अपने नगरों को,
विकट डाल अब ज्वलन्त दाह में ।
कर्मठता का परिचय देकर,
झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।
प्रेम दया करुणा से भरकर,
लगा शक्ति कर्म के निर्वाह में ।
अविद्या का पूर्ण दमन कर,
झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।
जला शरीर कर कार्य पूर्ण अब,
प्रभु होंगे तेरे गवाह में ।
बाधाओं को थर-थर से कंपाकर,
झुका शरीर चल क्षितिज राह में ।।
