तीन रंग से बनता है
तीन रंग से बनता है,
और चौथे से फिर सजता है…
जय घोष भारत माता का,
इसके सीने में गरजता है…
तू चाहे कितना लाल करे,
मेरे खून से इसके आँचल को,
ये रखता है रंग केसररया,
जो हर पल और निखरता है…
तू काला कितना दामन कर,
कितना ही इसे तू तार कर,
ये रखता है रंग बिलकुल चिट्टा,
चारों जो दिशा बिखरता है…
तू भर दे दहशत दिल-ओ-दिमाग,
तू अंगारों से काम ले,
गहरे हरे रंग का बादल,
बन के प्यार बरसता है…
तू आग जला, तू शीश काट,
चाहे तू अंग-अंग को छांट,
बन कर विष नीला यह तुझको,
फूटी आँख अखरता है…
कहते हैं इसे तिरंगा,
ये है भारत की शान,
बन हिंदुस्तानी का सर-ओ-ताज,
ये गौरव से लहरता है
I am a very small size poet. Love Science and Poetry.