दिव्यता, a poetry by Kumar Thakur, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

दिव्यता

दिव्यता

तुम से प्रेम करके
मैंने बहुत कुछ सिख लिया,
घी, मखन, छाछ को,
अलग करना सिख लिया,
विष को पीना सिख लिया
गले में रखना सिख लिया,
अमृत को बांटना सिख लिया
जीवन को समझना सिख लिया
प्रेम सहज चीज़ नहीं है
चाहे किसी से भी करो,
बलिदान देना पड़ता है
अपनी इच्छाओं का
अपनी खुशियों का,
अपने सुख का,
अपने अस्तित्व का,
मन रूपी समंदर का
मंथन करना पड़ता है
तब कहीं जा कर
प्राप्त होता है
संपूर्ण प्रेम
संपूर्ण स्वतन्त्रता

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