प्रेम
तेरे प्रेम में
और मेरे प्रेम में
केवल एक व्याख्या
विषय का फरक था ..
तेरा प्रेम संसारिक था,
मेरा प्रेम अलौकिक,
तेरा प्रेम
संसार की गतिविधियों के साथ
बढ़ता, घटता, बदलता रहा..
मेरा प्रेम
भूमंडलीय प्रकाश की भाँती
अपने स्थान पर
चिर स्थिर रहा – ना बड़ा ना घटा ..
तेरे प्रेम का ज्ञान
भौतिक आवरणों से
ढका हुआ था,
मेरा प्रेम अवर्णीय था
अविनाशी था …
तेरा प्रेम
अर्थों से भरा हुआ था ..
मेरा प्रेम सहज था,
आनंदित था,
मेरे प्रेम का अनुवाद
शब्दहीन था ..
मेरे प्रेम को
किसी भाषा के
आश्रय की ज़रूरत नहीं थी …
और तेरा प्रेम,
मौखिक था.
आलाप था..
किन्तु हम दोनों का प्रेम
प्रेम ही तो था ..

Writer – author – graphic designer