मंजिल की चाह, a poetry by Kumari Janvi, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

मंज़िल की चाह

मंज़िल की चाह

मंजिल पाने की चाह हैं,
तुम आगे तो बढ़ो, सामने ही राह है
बस बढ़ते चलना, तुम रुकना मत,
आगे तो कठिनाइयाँ आएँगी, तुम डरना मत।
मुलाकातें तो बहुत लोगों से होगी, उनमें से कुछ अच्छे होंगे और कुछ बुरे
घबराकर पीछे मत मुड़ना,
बस, याद रखना तुम्हें सिर्फ अच्छे के साथ है जुड़‌ना ।
बढ़ते चलो, जरूर मिलेगी सफलता,
बस डरना मत की मिलेगी ही सिर्फ विफलता ।
तुम आगे तो बढ़ो, क्योंकि मंजिल पाने की चाह है,
सामने ही राह है।।

Open chat
Hello
Chat on Whatsapp
Hello,
How can i help you?