मन की उड़ान
मन की उड़ान मत पूछिए……
कभी यह गगन में उड़ता मस्त पंछी है,
कभी यह भावनाओं में बहती सुस्त ग्रंथि है ।
मन की उड़ान मत पूछिए……
इच्छाएं प्रतिपल नई नई आती इसमें,
दूर भवन तक सैर कर आती जिसमें ।
कभी कोमल तो कभी कठोर बन जाता है,
कभी मनोबल को ऊपर तो कभी नीचे ले आता है ।
मन की उड़ान मत पूछिए…..
खुशी की लहर से हो दुगना पुष्ट,
फिर अगले पल हो अपने से रुष्ट ।
क्या पहेली है यह,
मानो अंतर्दृष्टि की सहेली है यह ।
मन की उड़ान मत पूछिए…….
इसकी उड़ान परख ली जो,
तो हर पड़ाव पार हो जाएगा ।
इसकी गुत्थी सुलझ गई तो,
प्रत्येक अनुभूति, उत्साह ,अंतःकरण का वार हो पाएगा ।
मन की उड़ान मत पूछिए……

मैं अपने मन के भावों को कविता के रूप में व्यक्त करते समय बहुत आनन्दित, उत्साहित, प्रफुल्लित व नवचेतना का अनुभव करती हूं।