मर्द, a poetry by Mayank Maheshwari, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

मर्द

मर्द

क्या वो ही मर्द है जो रो नहीं सकता,
बिना जिम्मेदारी के सो नहीं सकता?
पुरुष प्रधान कहते थे समाज को,
क्या वो ही मर्द है जो हुकुम चलाता था नारी को?
आरक्षण से नारी की सुरक्षा का प्रबंध हो जाता है,
क्या वो ही मर्द है जो झूठे आरोप में मारा जाता है?
पीड़ा अगर स्त्री को हुई तो सुनवाई होती है,
पर क्या वो ही मर्द है जो खुद को खुलकर बोल तक नहीं पाता है?
एक लड़की का आंसू तो मोती बन जाता है,
क्या वो ही मर्द है जो इज्जत लूट जाने पर भी चुप रह जाता है?
हाथ लगा नारी को तो हजार शस्त्र चलते हैं,
क्या वो ही मर्द है जिसके पक्ष में न कोई शास्त्र चलते हैं?
राम हुए,कृष्ण हुए, सदा रहे पत्नी के पास,
क्या वो ही मर्द है जो रखे पास कहलाया जाता है जोरू का दास?
लड़कियां ऊंचाइयों को छूएंगी और मर्द कुछ न कर पाएंगे,
क्या वो ही मर्द है जो अब भेदभाव का शिकार हो जाएंगे?
कानून हो तो बराबर हो, मानवता हो तो बराबर हो,
अगर ऐसे ही होता रहा, तो स्त्री की जो दशा थी उसमें पुरुष आ जाएंगे।
आवाज उठाओ अपने लिए,
हां वो ही मर्द है जो सबकी रक्षा कर जाएंगे,
हां वो ही मर्द है जो सीमा पर लड़के मारे जाएंगे,
हां वो ही मर्द है जो देश के झंडे को ऊंचा कर जाएंगे,
हां वो ही मर्द है जो किसी को गिराने की जगह खुद ऊपर जाएंगे,
हां वो ही मर्द है जो सदा खुशियों को साथ मनाएंगे।

सभी को पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

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