आज बहुत दिनों बाद जब उठाया,
अपनी लेखनी को मैंने ,
यकायक जाहिर करते हुए नाराजगी,सवाल करती है वो मुझसे
कि आजकल बहुत खफा रहने लगी हो तुम हमसे?
मैंने मुस्कुरा कर कहा -इसी दुविधा में हूं,सखी आजकल मैं
कि क्या लिखूं? कुछ सूझता ही नहीं है मुझे……
दर्द लिखूं कि खुशियां लिख दूं,
अपने लिए कि गैरों के लिए लिख दूं….
थके हुए मालूम पडते हैं ये हाथ मेरे,
जब भी विचार करती हूं, उठाने को तुझे…….
कल तक जो एक नादान बच्ची थी,
आज वो बड़ी हो गई है,जब से सुना है कि वो विवाह योग्य हो गई है,
जब भी नजरें फेरती है , वो अपने बदलते भविष्य की ओर….
बस इसी डर से नहीं संवारती आजकल तुझे,
कि कहीं हंसने न लगो तुम मेरी इन बेतुकी बातों पर,
या रो देगी तुम भी ,उकेरते हुए अल्फाजों को मेरे…….
समझते हुए जज़्बातों को मेरे……..????️????️✍️✍️
Poetess in ‘aazaad kalam sansthaan’ ,dausa & It’s state secretary Qualifications-B.A 3rd year student in Rajasthan University University & D.el.ed 2 year teacher student