मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है, a poetry by Nitika

मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है

मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है

चलती ऐसी जिंदगी की रेखा है,
मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।
इतनी आसान नहीं होती जिंदगी,
ये पता चला जब घर से बाहर मैं निकली।
लोगों की बातों में मैंने खुद को फिसलते देखा है,
मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।
माना कि हार गई थी मैं,
मुसीबत में हर बार गई थी मैं,
पर इससे मैंने खुद को और मज़बूत होते देखा है,
मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।
घर बैठे मैंने आराम नहीं था फरमाया,
क्योंकि मुझमें कुछ कर दिखाने का जुनून था छाया।
सबको खुश रखने के बावजूद मैंने कइयों को दुखी होते देखा है,
मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।
सकारात्मक सोच और रब पे विश्वास हुआ मुझे जब से,
संवर गई मेरी ज़िंदगी तब से ।
मैंने किस्मत को भी बदलते देखा है,
मैंने खुद को खुद से जुदा होते देखा है।

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