मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं, a poetry by Juhi Khanal

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं

मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं

ओझल हूँ आकाश सी, निश्चल हूँ पलाश सी,
उन्मुक्त अधर्मी मन हृदय में, धर्म हूँ कैलाश सी,
दक्ष की कन्या, शिव की शक्ति,
मैं जन्म से ही सुगंधा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ ।
पहुँची पिता दक्ष के महा यज्ञ में, पुत्री महा कृतज्ञ मैं,
शिव की ना सुनकर अपनी ज़िद पर, पितृ मोह से मर्मज्ञ मैं,
पर शंकर का अशंकर हुआ, प्रजापति ने जो की थी,
मैं वो शिव निंदा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
होम कर खुद को हवन में, प्राण छोड़ समा गयी पवन में,
आत्म त्याग को स्वीकार लिया, सह न सकी जो शक्ति थी पिता के वचन में,
तर्क वितर्क में कुचला गया जो,
मैं वो एक परिंदा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
अग्नि कोई दुर्बल नहीं, पर मुझे भस्म करने का, अग्नि में भी बल नहीं,
हवन कुंड की शैया पर मृत हूँ, मेरी मृत्यु का कारण अपमान है अनल नहीं,
घृणा युक्त संसार में, मैं शिव हृदय की बासिंदा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
रूप हूँ मैं भक्ति का, विवेक हूं मैं व्यक्ति का,
51 भागों में पूजा गया जो वो पीठ हूँ मैं शक्ति का,
संसार की जननी, मैं त्रिलोक की स्वछन्दा हूँ, मैं सती अभी भी ज़िंदा हूँ ।
चंड मुंड संहारे मैंने, रक्त बीज भी मारे मैंने,
महिषाशुर अभिमानी था, अमरता के वरदान भी पछाड़े मैंने,
इस जग की जननी मैं, अपनी संतान के लिए काली सी प्रचंडा हूँ,
मैं सती अभी भी ज़िंदा हूँ।
जालंधर का मोह हूँ मैं, आक्रंदन का विद्रोह हूँ मैं,
पार्वती का प्रत्यक्ष उदाहरण, उमा का आरोह हूँ मैं,
पति व्रता की साक्षार मैं वो पावन शुद्ध वृंदा हूँ, मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
कुकर्म को सहेज मैं, भस्म हो रही दहेज में,
कोख को अपनी चीर कर, अग्निपरीक्षा में पैरों को पैसेज मैं,
पवित्रता को सबित करती में सीता सी पुष्पिन्दा हूँ,
मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
तन पे लिपटी आबरू मेरी, शतरंज से होती रूबरू गहरी,
शकुनि समाज की प्रत्यक्ष चाल पर, क्या आज फिर मर्यादा मिट गयी दुशाशन तेरी??
पांडवों के संमुख खड़ी मैं, आज भरी सभा में शर्मिंदा हूँ,
मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।
दुर्योधन भी जीवित है, पांचाल सुता आज भी पीड़ित है,
पासा फिर उलट गया है, ग्लानि में सिमटे, पांच भाई फिर लज्जित हैं,
हर युग में किया गया जो वो मुनष्य रूपी धंधा हूं, मैं सती अभी भी ज़िंदा हूं।
गौरी का स्नेह हूं मैं, शारदा सी सुदेह हूं मैं,
हर नारी पर किया गया जो, शंका भरा संदेह हूं मैं,
जीवन की सती प्रथा में जीवित देह त्यागती, मैं वही आदि नंदा हूं,
मैं सती अभी भी जिंदा हूं।
भ्रूण जितनी आयु मेरी, फिर आत्मा छीनेगा रावण आज, बन वायु मेरी,
आज तुम कहाँ हो, आज भी रक्षा करने आओगे ना जटायु मेरी??
किसी दयावान की दया पर बक्षी गयी मैं,
उन बेटियों में चुनिंदा हूँ, मैं सती अभी भी ज़िंदा हूँ ।
तन पर लालच हवस के छालों का आकर है, क्षण क्षण होता मेरा बहिष्कार है,
फ़िर भी जीवन जीती मुस्कुराती, ये संभव नहीं कोई चमत्कार है,
स्त्री नामक कोई अद्भुत प्राणी मैं, प्रलय की आनंदा हूँ,
मैं सती अभी भी जिंदा हूँ।

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