ये कैसा तुम्हारा प्यार है, वो अब मेरी समझ के बाहर है..!!
तुमने तीन दिन में किया प्यार का इज़हार,
कहा कि हमारे साथ में ही करार है…!!
कहा ये तुम्हारे साथ ज़िंदगी बिताने को तैयार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
मैंने किया तुम्हें डर से इनकार,
क्योंकि तुम्हें आता ज़्यादा ग़ुस्सा और कम प्यार…!!
तुमसे दूर रहना मुझे स्वीकार था,
पर लगा कि ज़िंदगी तुम्हारे साथ गुलज़ार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
बंद कर दिया तुमने मुझसे बात करना,
कहा कि अब नहीं तुम्हें मुझ पर मरना…!!
ब्लॉक कर तुम तो आगे बढ़ गए,
और मुझे तन्हा करके चले गए…!!!
अब तो सिर्फ़ तुम्हारा इंतज़ार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
फिर आया वो एक दिन,
जब नहीं रह सकी मैं तुम्हारे बिन…!!
इस बार मेरा कॉल तुमने उठा लिया,
और अपने प्यार से मुझे फिर मना लिया…!!
अब हमारा बस गया संसार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
फिर आया हमारे रिश्ते में बहुत सारा प्यार,
जो ले आया कई सवाल और इंतज़ार…!!
कहा तुमने — “सब संभालेंगे हम साथ में”,
ये सुनकर आ गई मैं भी तुम्हारी बात में…!!
पर तुम्हारा हर वादा निकला बेकार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
फिर आया वो इंतज़ार,
जो था मेरी हदों के पार…!!
ना कभी टाइम पर कॉल, ना कभी समय पर मिलना,
अब तो रह गया मुझे अपने होंठों को सिलना…!!
अब सब कुछ हुआ बर्बाद, सब बेकार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
जब देने की बारी आई मेरा साथ,
तो तुमने पीछे खींच लिया अपना हाथ…!!
शब्दों से किया ऐसा वार है,
जिससे मेरा दिल हुआ तार-तार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!
प्यार बदल गया तुम्हारा बस एक पसंद में,
छुरियाँ चलाईं तुमने अपने बोलने के ढंग में…!!
दे ना सके तुम मुझे सम्मान,
‘जान’ कहते थे — और कह दिया कि लूंगा तुम्हारी जान…
हाथ उठाने की बात कर, हो गए अनजान…!!
अब मेरा जीना हुआ दुश्वार है…!!
ये कैसा तुम्हारा प्यार है,
जो अब मेरी समझ के बाहर है…!!!

I am a lawyer and I like writing poems