लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार, a poetry by Nishi Singh, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार

लुप्तप्राय प्रजाति की पुकार

हे मानव!
तुम हो प्रकृति के रखवाले,
फिर भेदभाव क्यूँ डाले,
हमको बेघर करके तुम
खुद का घर बनाते हो
क्यूँ तुम पेड़ों को काट
हमको बहुत सताते हो ।
जाने कितने लुप्त हुए
आगे हम सब भी खो जायेंगे
तुम्हारी आधुनिकता के खातिर
हम बेमौत ही सो जायेंगे।
अब तो हम पे रहम करो
अपने स्वार्थी होने पे शरम करो
मत भूलो हमको मार कर
तुम ख़ुद भी न बच पाओगे।
अपने स्वार्थी कर्मों पे एक दिन
तुम स्वयं ही पछताओगे
बोलो जियोगे तुम कैसे
बिना भोजन ऑक्सीजन के
और बचोगे कैसे हम बिन
भयंकर प्रदुषण से ।
जो लुप्त हो गयी प्रजाति
उनको तुम न ला पाओगे
प्रण करो तुम बस इतना
हमें लुप्त होने से बचाओगे।।

Open chat
Hello
Chat on Whatsapp
Hello,
How can i help you?