व्योम मे रुका मैं।, a poetry by Kushaan Seth, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra

व्योम मे रुका मैं।

व्योम मे रुका मैं।

मेरी जान मेरी बूँद है
बिन-बूँद न गंभीर में
हूँ मैं अकेला कुछ नहीं
तेरे साथ होता बीर में।
हूँ मैं दुखी तेरी चाह पर
तुझको है मिलना क्षीर में ।

निकले थे आँसू आँख से ,
जब था सुना वो शब्द मैं
कहती है मेरे प्रेम को
जकड़े हो तुम ज़ंजीर में ।

उसकी कही इस बात पर
मैं भी द्रवित सा हो गया
आज़ाद थी मेरी क़ैद से
उसको यक़ीन ये हो गया ।
कहीं पत्थर , कहीं कंकड़,
कही सूखा तो कही बंजर
जहां भी देखना चाही,
मिला फिर भी नहीं वो मंज़र।

बोली जब तुम साथ थे
स्वच्छंद थी, आबाद थी
जबसे हूँ मैं औरों से मिली
मलीन सी मैं ही गई ।

अब याद आती है मुझे
तेरी सुधामय प्रीत वो
चंचल बहुत है मन मेरा
आराम है तेरी आगोश में ।

सुन बात बूँदों की गगन में
मेघ ने प्रस्तुत दिया
हम दिल से हर पल साथ थे
बिछड़े नहीं थे हम कभी
कभी साथ रहते थे, कुछ पल बिछड़ते थे कभी ।
मेरे दिल से तुम आज़ाद हो, फिर भी बिछड़ती क्यों नहीं…
जितना भी जाओ दूर तुम, मैं व्योम में हूँ रुका यहीं।
जितना भी जाओ दूर तुम, मैं व्योम में हूँ रुका यहीं।.

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