स्त्री, a poetry by Himanshi Gautam

स्त्री

स्त्री

स्त्री मात्र शब्द नही है ईश्वर की
सब कृतियो मे है सबसे खूबसूरत कृति
किसी के घर आंगन की तुलसी है
तो किसी की बगिया का गुलाब है
स्त्री है तो संसार है स्त्री है तो संस्कार है
स्त्री मात्र मानव नही, करुणा, ममता
सहनशीलता, दया, प्रेम, गरिमा की देवी है
स्त्री है गर पावन धरा पर, सरस्वती, लक्ष्मी
तो है दुर्गा,चंडी,काली भी कहलाती है
स्त्री के रूप है अनेको, हर रिश्ते से बधी है
बेटी है, बहन भी है, पत्नी है, माँ भी कहलाए है
कोई समझे है अबला, तो कोई समझे है लाचार
स्त्री ना ही अबला है और ना ही है बेचारी
सम्बंधो के धागे बधे रहे एक डोर से तो करती है
पग पग पर खुद की खुशियो को न्यौछावर
कही होती है तिरस्कृत तो कही होती है अपमानित
कही जलती दहेज में तो कही लूट जाती हवस से
स्त्री मात्र शब्द नही है शक्ति है हर जीवन की
साधू हो चाहे सन्यासी या हो कोई ब्रहमचारी
सारे होते है नतमस्तक उसकी ममता के आगे
स्त्री मात्र शब्द नही है ईश्वर की
सब कृतियो में है सबसे खूबसूरत कृति ।।

1 thought on “स्त्री”

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