होली कहें या प्रेम के रंग
प्रेम के रंग में सरोबार गुलाबी रंग,
शांति के गहरे सागर में डूबा हरा रंग,
शरारत और नजाकत से खिलखिलाता लाल रंग,
उल्लास, ख़ुशी और आनंद से भरा होली का हर एक रंग ।
एक पर दूसरा, दूसरे पर तीसरा, रंग के ऊपर रंग चढ़ा,
सोने पर सुहागा, भांग का वो लोटा बना ।
हंसने वाला हंस रहा, गाने वाला गा रहा,
होली ऐसी आई मेरे भाई,
इसके रंग में रंगकर मैं मैं न रहा, वो वो ना रहा ।
कोई रंगीन पानी में नहा रहा,
कोई सूखा सूखा ही भाग रहा ।
कोई कीचड़ में लतपथ गोता लगाए,
कभी इधर पड़ा कभी उधर गिरा ।
मिलजुल कर खेलो नाचो गाओ,
जो मिले उसे हंसकर गले लगाओ,
गीली खेलो या सूखी खेलो,
खेलो भाई खुलकर खेलो,
होली आई होली खेलो ।
![Neelam Chhibber, Celebrate Life with Us at Gyaannirudra](https://i0.wp.com/gyaannirudra.com/wp-content/uploads/2024/04/Neelam-Chhibber-Celebrate-Life-with-Us-at-Gyaannirudra.jpeg?resize=100%2C100&ssl=1)
Myself Neelam Chhibber, working in an engineering college as HR Manager. I love kavitas and poems.