Poetry writing

धर्म धरा

यह  धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की  महा प्रान  ।।
स्वर्णिम “अतीत” के चित्र , देश भारत महान  ।।

हमने इसको इतिहास झरोखों से देखा  ।
कहता वैसा ही पुरातत्व विद का लेखा  ।
यह  मातृ  भूमि  स्तुत्या  है ,  जननी  समान  ।।
यह धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की  महा प्रान  ।।

यह  वीर  प्रसवनी ,  नीति – न्याय  उर्वरा  धरा    ।
यह शक्ति स्रोत है , कण- कण ऊर्जा ओज भरा  ।
सागर से गहरा धैर्य , हिमालय स्वाभिमान  ।।
यह धर्म धरा है ,  वसुन्धरा  की  महा प्रान  ।।

इस भू पर जन्मे , तपसी ,त्यागी ,ज्ञानवान  ।
इस पर आये अवतार , बने पग के निशान  ।
वे  करें  असुर जन  नाश ,  साधु  जन  परित्रान  ।।
यह  धर्म  धरा   है ,  वसुन्धरा  की   महा  प्रान  ।।

अरविन्द घोष , नेता सुभास , देखे  गाँधी  ।
देखी पटेल , शेखर , अब्दुल्ला की आँधी  ।
झूले फाँसी   के   तख्त ,   हजारों   नौजवान  ।।
यह धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की  महा  प्राण  ।।

देखी नव पीढी  पतित , वर्ण  शंकर  होती  ।
इस आजादी के बाद , अस्मिता को खोती  ।
गढते  देखे   नव  कदाचार   के   कीर्ति  मान  ।।
यह  धर्म  धरा  है   वसुन्धरा  की  महा  प्रान  ।।

देखा  संसद  में , नेताओं  का  होहल्ला  ।
कर दिये विवादी राम ,जिहादी हैं अल्ला  ।
है तम  भविष्य  पर  घिरा ,  सुलगता  वर्तमान  ।।
यह  धर्म  धरा  है ,  वसुन्धरा  की   महा  प्रान  ।।

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