आख़िरी किरण
बेरंग सी इस जिंदगी में, भर गया
वो रंग हो तुम,
दूरियां भी है बहुत यूं,
उन दूरियों का संग हो तुम ।
दिल भी मेरा क्या करे,
इस प्यार का मलंग हो तुम,
आवेश में-जिसके हम बहे,
वो एक नई तरंग हो तुम ।
हूं अव्यवस्थित मैं अगर तो,
जीने का एक ढंग हो तुम,
ना-माशुका ना-प्रेमिका हो,
मेरे-देह का एक अंग हो तुम।
I am a part time poet and mostly loves to write sad zonor poetry.